खाटू श्याम जी मंदिर भारत के राजस्थान राज्य के सीकर जिले के खाटू गांव में स्थित एक हिंदू मंदिर है। यह मंदिर महाभारत के एक अति महत्वपूर्ण वीर योद्धा बर्बरीक को समर्पित है, जिन्हें भगवान श्री कृष्ण द्वारा कलयुग में श्याम नाम से पूजे व जाने का वरदान प्राप्त है। बर्बरीक एक असाधारण वीर योद्धा थे और उनके पास तीन अचूक बाण थे।
भगवान बर्बरीक ने युद्ध में भाग लेने से पहले स्वेच्छा से अपना शीश भगवान श्रीकृष्ण को अर्पित कर दिया था। इसीलिए उन्हें शीश का दानी भी कहा गया है। भगवान बर्बरीक का शीश राजस्थान के खाटू गांव में प्रकट हुआ था, जहाँ एक गौ प्रतिदिन एक स्थान पर दूध गिराती थी। जहाँ गौ माता दूध गिराती थी वहां खुदाई के दौरान प्राप्त हुए इस शीश को एक ब्राह्मण को सौंपा दिया गया। मान्यता है कि शीश मिलने के पश्चात् खाटू के तत्कालीन शासक को स्वप्न में मंदिर निर्माण कर शीश स्थापना का निर्देश मिला।
खाटू श्याम मंदिर का निर्माण 1027 ईस्वी में राजा रूप सिंह चौहान और उनकी धर्मपत्नी नर्मदा कँवर द्वारा करवाया गया। 1720 ईस्वी में, ठाकुर के दीवान अभय सिंह जी ने खाटू श्याम मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया।
खाटू श्याम जी को "श्याम बाबा", "हारे का सहारा", "शीश का दानी", "तीन बाण धारी", "बाबा श्याम हमारा", और "कलयुग का अवतार" जैसे नामों से संबोधित किया जाता है। बड़ी संख्या में भक्त उनकी पूजा करते हैं और बाबा का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए प्रति वर्ष लाखो की संख्या में खाटू श्याम जी मंदिर आते हैं।
जो भी भक्त श्रद्धा के साथ श्री खाटू श्याम जी के मंदिर में अरदास लगाता है उसकी मनोकामना ज़रूर पूरी होती हैं। श्री खाटू श्याम जी हारे का सहारा बनते हैं और अपने भक्तो को सभी प्रकार के संकंटों से उबारते हैं।
श्री खाटू श्याम जी , श्री भीम के पौते और श्री घटोत्कच के पुत्र भगवान बर्बरीक हैं, इनकी माता का नाम हिडिम्बा है।जिनका जिक्र महाभारत युद्ध के दौरान हुआ है। भगवान बर्बरीक को अपने शीश का दान करने पर भगवान श्रीकृष्ण ने यह आशीर्वाद दिया था कि कलयुग में तुम्हें मेरे नाम से पूजा जाएगा। इसलिए आज हम सभी उन्हें खाटू श्याम नाम से जानते हैं।
बाबा श्याम की कहानी : भगवान बर्बरीक विश्व के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर थे। किसी को पराजित करने के लिए भगवान बर्बरीक के तीन बाण ही बहुत थे। तीन बाणो के बल पर भगवान बर्बरीक, कौरवों और पांडवों की पूरी सेना को ख़त्म कर सकते थे। युद्ध के समय मैदान में भीम पौत्र बर्बरीक दोनों पक्षों के मध्य बिन्दु में एक पीपल के वृक्ष के नीचे खड़े हो गए और यह घोषणा कर दी कि मैं उस पक्ष की तरफ से लडूंगा जो पक्ष हार की कगार पर होगा। बर्बरीक की इस घोषणा से भगवान श्री कृष्ण अत्यंत चिंतित हो गए।
बर्बरीक के समक्ष जब भगवान श्रीकृष्ण उनकी वीरता का चमत्कार देखने के लिए उपस्थित हुए तब बर्बरीक ने उन्हें अपनी वीरता का परिचय दिया। श्री कृष्ण ने कहा कि यह जो वृक्ष है इसके सारे पत्तों को एक ही बाण से भेद दो तो मैं तुम्हारी वीरता मान जाऊ। बर्बरीक ने श्री कृष्ण से आज्ञा लेकर बाण को वृक्ष की ओर छोड़ दिया।
जब एक ही बाण एक-एक कर वृक्ष के सारे पत्तों को भेदता जा रहा था उसी दौरान एक पत्ता वृक्ष से टूटकर नीचे गिर गया। श्री कृष्ण ने उस पत्ते पर यह सोचकर पैर रख लिया की यह छेद होने से बच जाएगा, लेकिन सभी पत्तों को भेदता हुआ वह बाण श्री कृष्ण के पैरों के पास आकर घूमने लगा गया। तब भगवान बर्बरीक ने कहा कि प्रभु कृपया आप अपना पैर हटा लीजिए आपके पैर के नीचे एक पत्ता है, क्योंकि मैंने बाण को सिर्फ पत्तों को भेदने के लिए छोड़ा है आपके पैर को भेदने के लिए नहीं।
भगवान बर्बरीक के इस चमत्कार को देखकर श्री कृष्ण अत्यंत चिंतित हो गए। चूँकि भगवान श्रीकृष्ण यह बात भली भांति जानते थे कि बर्बरीक प्रतिज्ञावश सिर्फ हारने वाले का ही साथ देगा। यदि महाभारत युद्ध में कौरव हारते हुए नजर आए तो पांडवों के लिए बर्बरीक की ओर से संकट खड़ा हो जाएगा।
तब भगवान श्रीकृष्ण ब्राह्मण का भेष बनाकर प्रातः ही बर्बरीक के शिविर के द्वार पर पहुंच गए और दान मांगने लगे। बर्बरीक ने कहा- हे ब्राह्मण ! बोलिये आपको क्या चाहिए ? ब्राह्मणरूपी श्री कृष्ण ने कहा कि जो दान मुझे चाहिए वह दान तुम दे न सकोगे क्षत्रिय। और बर्बरीक श्री कृष्ण की बातों के जाल में फंस गए और श्री कृष्ण ने उनसे उनका शीश दान मांग लिया।
बर्बरीक ने अपने पितामह पांडवों की विजय कामना हेतु स्वेच्छा के साथ अपना शीश श्री कृष्ण को दान कर दिया। बर्बरीक के इस बलिदान को देखकर श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को कलियुग में स्वयं के नाम से पूजित होने का वरदान दिया। आज बर्बरीक को भगवान खाटू श्याम जी के नाम से पूजा जाता है।
खाटू श्याम जी मंदिर
खाटू श्याम जी मंदिर में प्रतिवर्ष फाल्गुन मास की एकादशी को एक बड़े मेले का आयोजन होता है, मेले में दूर-दूर से लाखों श्रद्धालु एकत्रित होते हैं। इसके अतिरिक्त, जन्माष्टमी, ग्यारस, नववर्ष व दीपावली जैसे महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार भी खाटू श्याम जी मंदिर में मनाए जाते हैं।
खाटू श्याम जी बाबा का जन्मोत्सव देवउठनी एकादशी को मनाया जाता है, जिसे भक्त-गण उनके प्राकट्य दिवस के रूप में मनाते हैं।
खाटू श्याम जी मंदिर के शिखर पर फहराया जाने वाला ध्वज, जिसे "निशान" भी कहते है, का अति विशेष धार्मिक महत्व है। प्रतिवर्ष यह ध्वज राजस्थान के झुंझुनू जिले के सूरजगढ़ कस्बे से लाया जाता है। सूरजगढ़ के एक प्राचीन मंदिर में सफेद कपड़े पर नीले घोड़े की चित्रित आकृति वाला यह ध्वज तैयार किया जाता है और फाल्गुन मास के लक्खी मेले के दौरान खाटूधाम लाकर मंदिर के शिखर पर फहराया जाता है।
श्री खाटू श्याम जी मंदिर जयपुर से लगभग 80 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। सबसे नजदीक रेलवे स्टेशन रींगस है, जो खाटू श्याम जी से लगभग 17-18 किलोमीटर दूर है। रींगस से खाटू के लिए बस व टैक्सी आसानी से उपलब्ध हैं।
श्री खाटू श्याम जी मंदिर आरती की समय सारणी
आरती शीतकालीन समय ग्रीष्मकालीन समय
- मंगला आरती प्रातः 05:30 बजे प्रातः 04:30 बजे
- श्रृंगार आरती प्रातः 08:00 बजे प्रातः 07:00 बजे
- भोग आरती दोपहर 12:30 बजे दोपहर 12:30 बजे
- संध्या आरती शाम 06:30 बजे शाम 06:30 बजे
- शयन आरती रात्रि 09:00 बजे रात्रि 10:00 बजे
खाटू श्याम जी की आरती
ॐ जय श्री श्याम हरे, बाबा जय श्री श्याम हरे।
खाटू धाम विराजत, अनुपम रूप धरे।
ॐ जय श्री श्याम हरे..
रतन जड़ित सिंहासन, सिर पर चंवर ढुरे।
तन केसरिया बागो, कुंडल श्रवण पड़े।
ॐ जय श्री श्याम हरे..
गल पुष्पों की माला, सिर पार मुकुट धरे।
खेवत धूप अग्नि पर दीपक ज्योति जले।
ॐ जय श्री श्याम हरे..
मोदक खीर चूरमा, सुवरण थाल भरे।
सेवक भोग लगावत, सेवा नित्य करे।
ॐ जय श्री श्याम हरे..
झांझ कटोरा और घडियावल, शंख मृदंग घुरे।
भक्त आरती गावे, जय-जयकार करे।
ॐ जय श्री श्याम हरे..
जो ध्यावे फल पावे, सब दुःख से उबरे।
सेवक जन निज मुख से, श्री श्याम-श्याम उचरे।
ॐ जय श्री श्याम हरे..
श्री श्याम बिहारी जी की आरती, जो कोई नर गावे।
कहत भक्तजन, मनवांछित फल पावे।
ॐ जय श्री श्याम हरे..
जय श्री श्याम हरे, बाबा जी श्री श्याम हरे।
निज भक्तों के तुमने, पूरण काज करे।
ॐ जय श्री श्याम हरे.. ।
बोलो हारे के सहारे की जय।
श्री खाटू श्याम जी जाने का रास्ता

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