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शुक्रवार के दिन धन और समृद्धि की देवी मां लक्ष्मी, मां संतोषी व मां काली की पूजन का विधान है।

शुक्रवार को मुख्यतः रूप से मां लक्ष्मी, मां संतोषी व् मां काली की पूजा की जाती है। धन और समृद्धि की देवी मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के शुक्रवार को पूजा की जाती है तथा, संतोष और भक्ति की देवी मां संतोषी और मां के रौद्र रूप मां काली की भी पूजा की जाती है। 


मां लक्ष्मी : शुक्रवार का दिन माँ लक्ष्मी को समर्पित होता  है। शुक्रवार को माँ लक्ष्मी का पूजन करने से भौतिक सुख-समृद्धि व् आर्थिक स्थिरता आती है। 

मां संतोषी : शुक्रवार का दिन माँ संतोषी की पूजा के लिए भी अति शुभ माना गया है, जिन्हें भगवान गणेश की सुपुत्री जाना गया है। 

मां काली : मान्यताओं के अनुसार, शुक्रवार के दिन दुख, संकट, विपदाओं और क्लेश को दूर करने के लिए मां के रौद्र रूप मां काली का भी पूजन होता है। 

अन्य : इस दिन तुलसी के पौधे का पूजन करना भी अत्यंत शुभ माना गया है, चूँकि तुलसी, मां लक्ष्मी का ही स्वरूप है। 


शुक्रवार के दिन मां देवी लक्ष्‍मी जी की उपासना करने से विशेष धन लाभ की प्राप्ति होती है।

शुक्रवार के दिन मां देवी लक्ष्मी का पूजन किया जाता है। मां देवी लक्ष्मी धन, समृद्धि और सौभाग्य की देवी मानी जाती हैं, और इसलिए उन्हें धन व् समृद्धि की प्राप्ति के लिए पूजा जाता है। शुक्रवार को लक्ष्मी पूजा करके लोग उन्हें प्रसन्न करते हैं और उनसे आशीर्वाद की कामना करते हैं। सनातन धर्म के अनुयायी शुक्रवार को धन और समृद्धि के लिए व्रत इत्यादि भी रखते हैं, दीप व् दीपमाला भी जलाते हैं, पूजन करते हैं और मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए मन्त्र भी जपते हैं। यह विधियां उन्हें आनंद और धन की प्राप्ति में सहायता करने के लिए की जाती हैं।

मां देवी लक्ष्मी का पूजन सफेद या गुलाबी वस्त्र पहनकर ही करना चाहिए। देवी लक्ष्मी की पूजा का सर्वोत्तम समय मध्य रात्रि होता है। मां देवी लक्ष्मी की उसी प्रतिकृति का पूजन करना चाहिए, जिनमे मां देवी गुलाबी कमल के पुष्प पर विराजित हो। साथ ही उनके हाथों से धन की वर्षा हो रही हो। मां देवी लक्ष्मी को गुलाबी कमल पुष्प चढ़ाना सर्वोत्तम रहता है। पूजन में मां लक्ष्मी जी को सफेद चंदन, सफेद फूल, खीर का भोग अर्पित करें।  कहा गया है की मां लक्ष्मी के मन्त्रों का जाप स्फटिक की माला से करने पर माँ तुरंत प्रसन्न होती है। शुक्रवार के दिन "लक्ष्मी श्री यंत्र" को स्थापित कर यंत्र की नियमित रूप से पूजा करने से धन, व्यापार में वृ्द्धि होती है। शुक्रवार के दिन मां देवी लक्ष्‍मी जी की उपासना करने से विशेष धन लाभ की प्राप्ति होती है। वैभव लक्ष्मी व्रत 11 या 21 शुक्रवार तक करें।  इसे किसी भी माह के शुक्ल पक्ष के शुक्रवार से प्रारम्भ करना चाहिए। 

देवी लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने के लिए श्रीसूक्त का पाठ करना चाहिए व् सफेद चीजों का दान करना चाहिए।

श्री लक्ष्मी माता जी की आरती

ओम जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।

तुमको निशिदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता॥

ओम जय लक्ष्मी माता॥

उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता।

मैया तुम ही जग-माता।।

सूर्य-चंद्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता॥

ओम जय लक्ष्मी माता॥

दुर्गा रुप निरंजनी, सुख सम्पत्ति दाता।

मैया सुख सम्पत्ति दाता॥

जो कोई तुमको ध्याता, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता॥

ओम जय लक्ष्मी माता॥

तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता।

मैया तुम ही शुभदाता॥

कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी, भवनिधि की त्राता॥

ओम जय लक्ष्मी माता॥

जिस घर में तुम रहतीं, सब सद्गुण आता।

मैया सब सद्गुण आता॥

सब सम्भव हो जाता, मन नहीं घबराता॥

ओम जय लक्ष्मी माता॥

तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता।

मैया वस्त्र न कोई पाता॥

खान-पान का वैभव, सब तुमसे आता॥

ओम जय लक्ष्मी माता॥

शुभ-गुण मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि-जाता।

मैया क्षीरोदधि-जाता॥

रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता॥

ओम जय लक्ष्मी माता॥

महालक्ष्मीजी की आरती, जो कोई जन गाता।

मैया जो कोई जन गाता॥

उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता॥

ओम जय लक्ष्मी माता॥

ऊं जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।

तुमको निशदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता। ऊं जय लक्ष्मी माता।।

दोहा

महालक्ष्मी नमस्तुभ्यम्, नमस्तुभ्यम् सुरेश्वरि। हरिप्रिये नमस्तुभ्यम्, नमस्तुभ्यम् दयानिधे।।

पद्मालये नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं च सर्वदे। सर्व भूत हितार्थाय, वसु सृष्टिं सदा कुरुं।।


सब बोलो लक्ष्मी माता की जय, लक्ष्मी नारायण की जय। 


आरती पूरी होने के बाद तुलसी में आरती जरूर दिखाना चाहिए, इसके बाद घर के लोगों को आरती लेनी चाहिए।



शुक्रवार के दिन मां देवी संतोषी जी की पूजा से मिलता है उत्तम परिणाम 

शुक्रवार को मां के इस स्‍वरूप (मां देवी संतोषी जी) की भी पूजा होती है। सुख, समृद्धि और सौभाग्य की कामना से मां संतोषी के सोलह शुक्रवार व्रत करने का विधान है। शुक्रवार को सूर्योदय से पहले उठकर घर की सफ़ाई इत्यादि पूर्ण कर लेनी चाहिए। स्नानादि करने के बाद घर में ही किसी पवित्र स्थान पर माता संतोषी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। माता संतोषी के सम्‍मुख जल से भरा कलश रखें और कलश के ऊपर एक कटोरा गुड़ और चना भर कर रखें। माता संतोषी के समक्ष घी का दीप जलाएं, फिर अक्षत, इत्र, फ़ूल, नारियल, लाल वस्त्र या लाल चुनरी मां को अर्पित करें। माता संतोषी को गुड़ और चने का भोग लगाकर, कथा पढ़ कर आरती करें। कथा समाप्त होने पर हाथ का गुड़ और चना गौ को खिला दें। कलश पर रखे गुड़ व् चने का प्रसाद सभी जनो में बांटें। कलश के जल को घर में सभी स्थानों पर छिड़कें और बचा हुआ जल तुलसी के पौधे में डाल दें। ध्‍यान रहे इस व्रत को करने वाले को ना तो खट्टी चीज़ो को हाथ लगाना है और ना ही खट्टी चीज़ो को खाना है। "श्री संतोषी देव्व्ये नमः" का 108 बार जाप करें।

मां देवी संतोषी जी की पूजा से संतोष, सुख व् समृद्धि की प्राप्ति होती है, सभी मनोकामनाएं पूरी होती है और जीवन की समस्याओं से मुक्ति मिलती है। 

व्रत और पूजा के नियम : सोलह शुक्रवार मां संतोषी का व्रत करने का विधान है। व्रत पूरा होने के बाद उद्यापन करना अत्यंत आवश्यक है, अन्यथा फल प्राप्ति में विलंब हो सकता है। इसे भी शुक्ल पक्ष के शुक्रवार से प्रारम्भ करना चाहिए।

श्री संतोषी माता जी की आरती

जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता।

अपने सेवक जन को, सुख संपत्ति दाता।।

जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता..


सुंदर, चीर सुनहरी, मां धारण कीन्हो।

हीरा पन्ना दमके, तन श्रृंगार लीन्हो।।

जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता..


गेरू लाल छटा छवि, बदन कमल सोहे।

मंद हंसत करूणामयी, त्रिभुवन जन मोहे।।

जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता ..


स्वर्ण सिंहासन बैठी, चंवर ढुरे प्यारे।

धूप, दीप, मधुमेवा, भोग धरें न्यारे।।

जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता..


गुड़ अरु चना परमप्रिय, तामे संतोष कियो।

संतोषी कहलाई, भक्तन वैभव दियो।।

जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता..


जय शुक्रवार प्रिय मानत, आज दिवस सोही।

भक्त मण्डली छाई, कथा सुनत मोही।

जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता..


मंदिर जगमग ज्योति, मंगल ध्वनि छाई।

विनय करें हम बालक, चरनन सिर नाई।

जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता..


भक्ति भावमय पूजा, अंगीकृत कीजै।

जो मन बसे हमारे, इच्छा फल दीजै।

जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता..


दुखी, दरिद्री ,रोगी , संकटमुक्त किए।

बहु धनधान्य भरे घर, सुख सौभाग्य दिए।

जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता..


ध्यान धर्यो जिस जन ने, मनवांछित फल पायो।

पूजा कथा श्रवण कर, घर आनंद आयो।

जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता..


शरण गहे की लज्जा, राखियो जगदंबे।

संकट तू ही निवारे, दयामयी अंबे।

जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता..


संतोषी मां की आरती, जो कोई नर गावे।

ॠद्धिसिद्धि सुख संपत्ति, जी भरकर पावे।

जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता..


शुक्रवार के दिन मां के रौद्र रूप मां काली की साधना करने से होता है दुःख, संकट व् शत्रुओ का विनाश।

शुक्रवार के दिन तंत्र सीखने वाले जन, मां दुर्गा के रौद्र रूप मां काली की पूजा करते हैं। साथ ही मां काली की कठिन साधना भक्ति करते हैं। मां काली की शरण में रहने वाले साधक के जीवन से सभी प्रकार के दुख, संकट और क्लेश दूर हो जाते हैं, इसके साथ ही जीवन में आने वाली सभी बलाएं भी टल जाती हैं। घर में मौजूद नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव ख़त्म हो जाता है। संहार की देवी मां काली की पूजा शुक्रवार को अचूक मानी जाती है। मां काली की उपासना से शत्रु का विनाश, भय, रोग, दोष, जादू टोना आदि से मुक्ति मिलती है। यदि आप भी मनचाहा वर या वधु  की कामना करते है, तो शुक्रवार के दिन विधि-विधान से मां काली की पूजा-अर्चना करें। मां काली का पूजन करने के लिए शुक्रवार को सुबह स्नानादि कर घर में किसी स्वच्छ स्थान पर मां की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। मां देवी काली की पूजा करने के लिए लाल वस्त्र धारण करने चाहिए। देवी के समक्ष आटे का दो मुंह वाला दीपक और गुग्गल की धूप जलाए व् पेड़े और लौंग का भोग लगाए। मां काली को फूल और चंदन अर्पित करें। देवी के समक्ष 'काली चालीसा' का पाठ करें। साथ ही पूजा के समय विधि विधान मन्त्र का 13 माला जाप करे "ॐ क्रीं कालिकायै नमः"।  पूजा के बाद  प्रसाद सभी जनो में वितरण करें। 

मां काली जी की आरती

अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली, 

 तेरे ही गुन गाए भारती, हे मैया, हम सब उतारे तेरी आरती |


 तेरे भक्त जनो पार माता भये पड़ी है भारी |

 दानव दल पार तोतो माड़ा करके सिंह सांवरी |

 सोउ सौ सिंघों से बालशाली, है अष्ट भुजाओ वली,

 दुशटन को तू ही ललकारती |

 हे मैया, हम सब उतारे तेरी आरती |


माँ बेटी का है इस जग जग बाड़ा हाय निर्मल नाता |

 पूत कपूत सुने है पर ना माता सुनी कुमाता |

 सब पे करुणा दर्शन वालि, अमृत बरसाने वाली,

 दुखीं के दुक्खदे निवर्तती |

 हे मैया, हम सब उतारे तेरी आरती |


 नहि मँगते धन धन दौलत ना चण्डी न सोना |

 हम तो मांगे तेरे तेरे मन में एक छोटा सा कोना |

 सब की बिगड़ी बान वाली, लाज बचाने वाली,

 सतियो के सत को संवरती |

 हे मैया, हम सब उतारे तेरी आरती |


 चरन शरण में खडे तुमहारी ले पूजा की थाली |

 वरद हस् स सर प रख दो म सकत हरन वली |

 माँ भार दो भक्ति रस प्याली, अष्ट भुजाओ वली,

 भक्तो के करेज तू ही सरती |

 हे मैया, हम सब उतारे तेरी आरती |


 अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली |

 तेरे ही गुन गाए भारती, हे मैया, हम सब उतारे तेरी आरती |


काली चालीसा दोहा

जय काली जगदम्ब जय, हरनि ओघ अघ पुंज।

वास करहु निज दास के, निशदिन हृदय निकुंज॥

जयति कपाली कालिका, कंकाली सुख दानि।

कृपा करहु वरदायिनी, निज सेवक अनुमानि॥


काली चालीसा

जय जय जय काली कंकाली।

जय कपालिनी, जयति कराली॥

शंकर प्रिया, अपर्णा, अम्बा।

जय कपर्दिनी, जय जगदम्बा॥

आर्या, हला, अम्बिका, माया।

कात्यायनी उमा जगजाया॥

गिरिजा गौरी दुर्गा चण्डी।

दाक्षाणायिनी शाम्भवी प्रचंडी॥

पार्वती मंगला भवानी।

विश्वकारिणी सती मृडानी॥

सर्वमंगला शैल नन्दिनी।

हेमवती तुम जगत वन्दिनी॥

ब्रह्मचारिणी कालरात्रि जय।

महारात्रि जय मोहरात्रि जय॥

तुम त्रिमूर्ति रोहिणी कालिका।

कूष्माण्डा कार्तिका चण्डिका॥

तारा भुवनेश्वरी अनन्या।

तुम्हीं छिन्नमस्ता शुचिधन्या॥

धूमावती षोडशी माता।

बगला मातंगी विख्याता॥

तुम भैरवी मातु तुम कमला।

रक्तदन्तिका कीरति अमला॥

शाकम्भरी कौशिकी भीमा।

महातमा अग जग की सीमा॥

चन्द्रघण्टिका तुम सावित्री।

ब्रह्मवादिनी मां गायत्री॥

रूद्राणी तुम कृष्ण पिंगला।

अग्निज्वाला तुम सर्वमंगला॥

मेघस्वना तपस्विनि योगिनी।

सहस्त्राक्षि तुम अगजग भोगिनी॥

जलोदरी सरस्वती डाकिनी।

त्रिदशेश्वरी अजेय लाकिनी॥

पुष्टि तुष्टि धृति स्मृति शिव दूती।

कामाक्षी लज्जा आहूती॥

महोदरी कामाक्षि हारिणी।

विनायकी श्रुति महा शाकिनी॥

अजा कर्ममोही ब्रह्माणी।

धात्री वाराही शर्वाणी॥

स्कन्द मातु तुम सिंह वाहिनी।

मातु सुभद्रा रहहु दाहिनी॥

नाम रूप गुण अमित तुम्हारे।

शेष शारदा बरणत हारे॥

तनु छवि श्यामवर्ण तव माता।

नाम कालिका जग विख्याता॥

अष्टादश तब भुजा मनोहर।

तिनमहँ अस्त्र विराजत सुन्दर॥

शंख चक्र अरू गदा सुहावन।

परिघ भुशण्डी घण्टा पावन॥

शूल बज्र धनुबाण उठाए।

निशिचर कुल सब मारि गिराए॥

शुंभ निशुंभ दैत्य संहारे।

रक्तबीज के प्राण निकारे॥

चौंसठ योगिनी नाचत संगा।

मद्यपान कीन्हैउ रण गंगा॥

कटि किंकिणी मधुर नूपुर धुनि।

दैत्यवंश कांपत जेहि सुनि-सुनि॥

कर खप्पर त्रिशूल भयकारी।

अहै सदा सन्तन सुखकारी॥

शव आरूढ़ नृत्य तुम साजा।

बजत मृदंग भेरी के बाजा॥

रक्त पान अरिदल को कीन्हा।

प्राण तजेउ जो तुम्हिं न चीन्हा॥

लपलपाति जिव्हा तव माता।

भक्तन सुख दुष्टन दु:ख दाता॥

लसत भाल सेंदुर को टीको।

बिखरे केश रूप अति नीको॥

मुंडमाल गल अतिशय सोहत।

भुजामल किंकण मनमोहन॥

प्रलय नृत्य तुम करहु भवानी।

जगदम्बा कहि वेद बखानी॥

तुम मशान वासिनी कराला।

भजत तुरत काटहु भवजाला॥

बावन शक्ति पीठ तव सुन्दर।

जहाँ बिराजत विविध रूप धर॥

विन्धवासिनी कहूँ बड़ाई।

कहँ कालिका रूप सुहाई॥

शाकम्भरी बनी कहँ ज्वाला।

महिषासुर मर्दिनी कराला॥

कामाख्या तव नाम मनोहर।

पुजवहिं मनोकामना द्रुततर॥

चंड मुंड वध छिन महं करेउ।

देवन के उर आनन्द भरेउ॥

सर्व व्यापिनी तुम माँ तारा।

अरिदल दलन लेहु अवतारा॥

खलबल मचत सुनत हुँकारी।

अगजग व्यापक देह तुम्हारी॥

तुम विराट रूपा गुणखानी।

विश्व स्वरूपा तुम महारानी॥

उत्पत्ति स्थिति लय तुम्हरे कारण।

करहु दास के दोष निवारण॥

माँ उर वास करहू तुम अंबा।

सदा दीन जन की अवलंबा॥

तुम्हारो ध्यान धरै जो कोई।

ता कहँ भीति कतहुँ नहिं होई॥

विश्वरूप तुम आदि भवानी।

महिमा वेद पुराण बखानी॥

अति अपार तव नाम प्रभावा।

जपत न रहन रंच दु:ख दावा॥

महाकालिका जय कल्याणी।

जयति सदा सेवक सुखदानी॥

तुम अनन्त औदार्य विभूषण।

कीजिए कृपा क्षमिये सब दूषण॥

दास जानि निज दया दिखावहु।

सुत अनुमानित सहित अपनावहु॥

जननी तुम सेवक प्रति पाली।

करहु कृपा सब विधि माँ काली॥

पाठ करै चालीसा जोई।

तापर कृपा तुम्हारी होई॥


काली चालीसा दोहा

जय तारा, जय दक्षिणा, कलावती सुखमूल।

शरणागत 'भक्त ’ है, रहहु सदा अनुकूल॥







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