भगवान परशुराम जयंती
भगवान परशुराम जयंती हिन्दू धर्म के समुदाय के लोगो के बीच एक बड़ा धार्मिक महत्व रखती है, क्योंकि यह दिन भगवान श्री परशुराम जी के जन्म का प्रतीक है। भगवान परशुराम जी का जन्म तृतीया तिथि को प्रदोष काल में हुआ था। अक्षय तृतीया को भगवान परशुराम जी जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। इसे “परशुराम द्वादशी” भी कहा जाता है। परशुराम जी जयंती वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, उनका जन्म अधर्मी, पापी और क्रूर शासको का नाश करने के लिए हुआ था। ऐसा माना जाता है कि उन्होंने पृथ्वी से इक्कीस बार क्षत्रियों का विनाश भी किया था। हालांकि भगवान परशुराम जी ने एक ब्राह्मण परिवार में जन्म लिया था और उनमे क्षत्रियों के गुण थे। भगवान परशुराम जी श्री विष्णु जी के छठे अवतार थे। श्री हरि ने अपना यह अवतार धरती के पापी राजाओं का विनाश करने के लिए लिया था। ऐसा माना जाता है कि इस दिन दिये गए पुण्य का प्रभाव कभी खत्म नहीं होता।
भगवान परशुराम जी अष्ट चिंरंजीवीयो में से एक हैं और आज भी पृथ्वी पर जीवित हैं। भारत के कई पश्चिमी तटों पर भगवान परशुराम जी के बहुत सारे मंदिर स्थित हैं। भगवान परशुराम जी के अन्य नाम राम जमदस्य, राम भार्गव, रामभद्र, भृगुपति, भृगुवंशी और वीरराम है।
पुराणों के अनुसार भगवान परशुराम जी का नाम दो शब्दों से मिलाकर बना है। परशु का मतलब है कुल्हाड़ी और राम, अर्थात कुल्हाड़ी के साथ राम। जैसे राम भगवान विष्णु जी के अवतार है, वैसे ही परशुराम जी भी भगवान विष्णु जी के ही अवतार हैं और उन्हीं की तरह ही शक्तिशाली भी हैं।
हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार भगवान परशुराम जी ने ब्राह्मणों और ऋषियों को अत्याचारों से बचाने के लिए जन्म लिया था। परशुराम जयंती के दिन पूजा-पाठ करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। इस दिन दान-पुण्य करने का विशेष महत्व है। मान्यता है कि जिन लोगों की संतान नहीं होती है उन लोगों के लिए ये व्रत फलदायी होता है। साथ ही भक्तगणों को भगवान परशुराम जी के साथ-साथ भगवान विष्णु जी का भी आशीर्वाद मिलता है।
हिन्दू पुराणों के अनुसार भगवान परशुराम जी अभी भी पृथ्वी पर मौजूद हैं। दक्षिण भारत में, उडुपी के पास पवित्र स्थान पजाका में भगवान परशुराम जी का एक मंदिर स्थित है, जहां जाकर श्रद्धालु उनके दर्शन करते हैं। इसके अलावा भारत के पश्चिमी तट पर भगवान परशुराम जी को समर्पित ऐसे बहुत से मंदिर स्थित है। जहां जाकर भक्त उनकी आराधना कर सकते हैं तथा आशीर्वाद ले सकते हैं।
भगवान परशुराम
भगवान परशुराम जी की जयंती भारतवर्ष में धूमधाम से मनाई जाती है। भगवान परशुराम ऋषि ऋचीक के पौत्र और जमदग्नि के पुत्र हैं। इनकी माता का नाम रेणुका था। हविष्य के प्रभाव से ब्राह्म्ण पुत्र होते हुए भी ये क्षात्रकर्मा हो गये थे। परशुराम जी भगवान शंकर जी के परम भक्त हैं। महादेव जी ने ही परशुराम जी को एक अमोघ अस्त्र "परशु (फरसा)" प्रदान किया था। इनका वास्तविक नाम राम था, किंतु हाथ में परशु धारण करने से ये परशुराम नाम से विख्यात हुए। भगवान परशुराम जी अपने पिता के अनन्य भक्त थे, पिता की आज्ञा से इन्होंने अपनी माता का सिर काट डाला था, लेकिन पुनः पिता के आशीर्वाद से माता की स्थिति यथावत हो गई।
भगवान परशुराम जी की तीर्थयात्रा
इनके पिता श्रीजमदग्नि जी के आश्रम में एक कामधेनु गाय थी, जिसकी अलौकिक ऐश्वर्य शक्ति को देखकर "कार्तवीर्यार्जुन" उसे प्राप्त करने के लिए दुराग्रह करने लगा था। अंत में उसने गौ को हासिल करने के लिए शक्ति का प्रयोग किया और उसे माहिष्मती ले आया। किंतु जब भगवान परशुराम जी को यह बात की जानकारी हुई तो उन्होंने कार्तवीर्यार्जुन तथा उसकी पूरी सेना का विनाश कर डाला। जिस पर पिता श्रीजमदग्नि ने परशुराम जी के इस चक्रवर्ती सम्राट के वध को ब्रह्म-हत्या के समान बताते हुए उन्हें तीर्थ सेवन की आज्ञा दी। वे तीर्थ यात्रा पर चले गये, वापस आने पर माता−पिता ने उन्हें आशीर्वाद दिया।
जब पृथ्वी दान कर दी
दूसरी ओर सहस्त्रार्जुन के वध से उसके पुत्रों के मन में प्रतिशोध की ज्वाला जल रही थी। एक दिन अवसर पाकर उन्होंने छद्म वेष में आश्रम में आकर जमदग्नि का सिर काट डाला और उनके सिर को लेकर भाग गए। जब भगवान परशुराम जी को यह समाचार मिला तो वे अत्यन्त क्रोधित हुए और पृथ्वी को क्षत्रिय-हीन कर देने की प्रतिज्ञा कर ली तथा इक्कीस बार घूम−घूमकर पृथ्वी को निःक्षत्रिय कर दिया। फिर पिता के सिर को धड़ से जोड़कर कुरुक्षेत्र में अन्त्येष्टि संस्कार किया। पितृगणों ने इन्हें आशीर्वाद दिया और पितृगण की आज्ञा से परशुराम जी ने सम्पूर्ण पृथ्वी प्रजापति कश्यपजी को दान में दे दी और स्वयं महेन्द्राचल पर तपस्या करने के लिए चले गये।
गणपति जी क्यों एकदन्त कहलाये ?
सीता स्वयंवर में भगवान श्रीराम जी द्वारा शिव−धनुष भंग किये जाने पर वह महेन्द्राचल से तुरंत जनकपुर पहुंचे, किंतु इनका तेज भगवान श्रीराम जी में प्रविष्ट हो गया और परशुराम जी ने अपना वैष्णव धनुष उन्हें देकर पुनः तपस्या के लिए महेन्द्राचल वापस लौट गये। मान्यताओं के अनुसार, भगवान परशुराम जी के क्रोध का सामना एक बार गणेश जी को भी करना पड़ा था। दरअसल उन्होंने भगवान परशुराम जी को शिव दर्शन से रोक दिया था। क्रोधित भगवान परशुराम जी ने उन पर अपने परशु से प्रहार किया तो गणेश जी का एक दांत नष्ट हो गया। इसी के बाद से गणेश जी एकदन्त कहलाये।
भक्तगणों का करते हैं कल्याण भगवान परशुराम जी
भगवान परशुराम जी चिरंजीवी हैं। ये अपने साधकों−उपासकों तथा अधिकारी महापुरुषों को दर्शन देते हैं। इनकी साधना−उपासना से भक्तों के जीवन का कल्याण होता है। मान्यता है कि वे आज भी महेन्द्राचल पर्वत पर तपस्या कर रहे हैं। ऋषि संतान परशुराम जी ने अपनी प्रभुता व श्रेष्ठवीरता की आर्य संस्कृति पर अमिट छाप छोड़ी है। शैव दर्शन में उनका अद्भुत उल्लेख है जो सभी शैव सम्प्रदाय के साधकों में स्तुत्य व परम स्मरणीय है। भारत देश में अनेक स्थानों पर भगवान जमदग्नि जी के तपस्या स्थल एवं आश्रम हैं, माता रेणुका जी के अनेक क्षत्र हैं, प्रायः रेणुका माता जी के मंदिर में अथवा स्वतंत्र रूप से परशुराम जी के अनेक मंदिर भारत भर में हैं, जहां उनकी शांत, मनोरम तथा उग्र रूप दर्शन होते हैं।
पूजन विधि :
परशुराम जयंती के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठें। पवित्र गंगा नदी में स्नान करे। जिन लोगों के लिए गंगा स्नान करना और भगवान परशुराम जी के मंदिर जाना संभव न हो, वो नहाने के पानी में गंगाजल मिला कर स्नान कर सकते हैं, स्नान आदि से निवृत्त होकर साफ सुथरे कपड़े पहनकर सूर्य देव को अर्घ्य दें और विष्णु मंदिर में जाकर भगवान परशुराम का सिमरन करे। पीले रंग के फूल और मिठाई भगवान परशुराम जी को अर्पित करें। पूजन के बाद आरती करके परिवार की सुख समृद्धि के लिए प्रार्थना करें। अपने सामर्थ के अनुसार इस दिन दान ज़रूर करे, इस दिन किया गया दान कभी क्षय नहीं होता।
भगवान परशुराम जयंती के दिन भगवान परशुराम जी की पूजा करने के दौरान मंत्र-जाप विशेष रूप से करें। इससे मनुष्य के स्वास्थ्य में सुधार होता है और जीवन में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
भगवान परशुराम जी पूजन मंत्र
ॐ रां रां ॐ रां रां परशुहस्ताय नम:
ॐ ब्रह्मक्षत्राय विद्महे क्षत्रियान्ताय धीमहि तन्नो राम: प्रचोदयात्
ॐ जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि तन्न: परशुराम: प्रचोदयात्
ॐ जमदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि तन्नो राम: प्रचोदयात्
ॐ परशुरामाय नमः
ॐ क्लिं परशुरामाय नमः
ॐ ह्रीं श्रीं परशुराम धरणेन्द्राय नमः
ॐ ऋणहर्ता परशुरामाय नमः
परशुराम जयंती के दिन करें स्तोत्र का जाप
ॐ जय जय जय परशुराम भगवान।
रक्षा करो भक्तों की तुम भगवान।।
वेदों के ज्ञाता तुम हो भगवान।
धर्म के रक्षक तुम हो भगवान।।
क्षत्रियों के नाशक तुम हो भगवान।
भक्तों के पालक तुम हो भगवान।।
अक्षय तृतीया तुम्हारा जन्मदिन।
इस दिन करें हम तुम्हारा पूजन।।
दया करो भगवान हम पर।
सुख-समृद्धि दो हमें भगवान।।
चिरंजीवी हैं भगवान परशुराम जी
अश्वत्थामा बलिव्यासो हनूमांश्च विभीषण:।कृप: परशुरामश्च सप्तएतै चिरजीविन:॥
सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्। जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।।
अर्थ - पुराणों में 8 चिरंजीवी महात्माओ का वर्णन है। जिनमें - हनुमान जी, अश्वत्थामा जी, कृपाचार्य जी, भगवान परशुराम जी, ऋषि मार्कंडेय जी, राजा बलि जी, महर्षि वेदव्यास जी और विभीषण जी हैं।
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