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सोमवार व्रत कथा

 



सोमवार को भगवान शिव को समर्पित होता हैं। सोमवार को भगवान शिव का दिन हिंदू धर्म में माना जाता है। भगवान शिव को समर्पित होने का ये दिन शिव के भक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है। बहुत से लोग इस दिन महादेव के मंदिर जाते हैं, शिवलिंग पर जल अभिषेक करते हैं और उनका पूजा अर्चन करते हैं। कुछ लोग इस दिन व्रत भी रखते है। ये दिन उनके लिए एक अवसर होता है अपनी भक्ति और समर्पण का प्रदर्शन करने का। महादेव के आशीर्वाद के लिए अगर भी सोमवार का व्रत कर रहे है तो शिव कथा को ज़रूर पढ़े या सुने। 


सोमवार व्रत कथा

किसी नगर में एक साहूकार व्यापारी रहता था। दूर-दूर तक उसका व्यापार फैला हुआ था। नगर के सभी लोग उस साहूकार का सम्मान करते थे। इतना सब कुछ संपन्न होने के बाद भी वह साहूकार बहुत दुःखी था, क्योंकि उसके कोई संतान न थी। जिस कारण अपने मृत्यु के पश्चात् व्यापार के उत्तराधिकारी की चिंता उसे हमेशा सताती रहती थी।


संतान प्राप्ति की इच्छा से साहूकार प्रत्येक सोमवार भगवान् शिव की व्रत व् पूजा किया करता था और शाम के समय शिव मंदिर में जाकर शिवजी के सामने घी का दीपक जलाया करता था। उसकी भक्ति देखकर माँ पार्वती प्रसन्न हुई और भगवान शिव से उस व्यापारी की मनोकामना पूर्ण करने का आग्रह किया।


महादेव बोले,  इस संसार में सबको उसके कर्म के अनुसार फल की प्राप्ति होती है। जो प्राणी जैसा कर्म करते हैं, उन्हें वैसा ही फल प्राप्त होता है।


महादेव द्वारा समझाने के बावजूद माँ पार्वती नहीं मानी और उस व्यापारी की मनोकामना पूर्ति हेतु वे शिवजी से बार-बार अनुरोध करती रही। अंततः माता के आग्रह को देखकर भगवान भोलेनाथ को उस व्यापारी को संतान प्राप्ति का वरदान देना पड़ा।


वरदान देने के पश्चात् भोलेनाथ माँ पार्वती से बोले, आपके आग्रह पर मैंने संतान प्राप्ति का वरदान तो दे दिया परन्तु इसका यह पुत्र सोलह वर्ष की आयु से अधिक समय तक जीवित नहीं रहेगा। उसी रात भगवान शिव उस व्यापारी के स्वप्न में आए और उसे संतान प्राप्ति का वरदान दिया और उसके पुत्र के सोलह वर्ष तक जीवित रहने की भी बात बताई।


महादेव के वरदान से व्यापारी को खुशी तो हुई, लेकिन संतान की अल्पायु की चिंता ने उस खुशी को नष्ट कर दिया। साहूकार ने पहले की तरह सोमवार के दिन भगवान शिव का विधिवत व्रत व् पूजा करता रहा। कुछ महीनो बाद साहूकार के घर एक अति सुन्दर बालक ने जन्म लिया, और घर में खुशियां की लहर भर गई।


बहुत धूमधाम से पुत्र जन्म का समारोह मनाया गया परन्तु व्यापारी को पुत्र-जन्म की अधिक प्रसन्नता नहीं हुई क्योंकि उसे पुत्र की अल्पआयु के बारे में पता था। जब पुत्र बारह वर्ष का हुआ तो व्यापारी ने उसे उसके मामा के साथ पढ़ने के लिए वाराणसी भेज दिया। लड़का अपने मामा के साथ शिक्षा प्राप्ति हेतु चल दिया। रास्ते में जहाँ भी मामा-भांजे विश्राम हेतु रुकते, वहीं यज्ञ करते और ब्राह्मणों को भोजन कराते।


लम्बी यात्रा के बाद मामा-भांजे एक नगर में पहुंचे। उस दिन नगर के राजा की पुत्री का विवाह था, जिस कारण पूरे नगर को फूलो से सजाया गया था। निश्चित समय पर बारात आ गई लेकिन वर का पिता अपने बेटे के एक आंख से काने होने के कारण बहुत चिंतित था। उसे भय था कि इस बात का पता चलने पर कहीं राजा विवाह से इनकार न कर दे।


इससे उसकी बदनामी भी होगी। जब वर के पिता ने साहूकार के पुत्र को देखा तो उसके मन में एक विचार आया। उसने सोचा क्यों न इस लड़के को दूल्हा बनाकर राजकुमारी से विवाह करा दूँ। विवाह के पश्चात इसको धन और आभूषण देकर विदा कर दूंगा और राजकुमारी को अपने घर ले जाऊंगा।


वर के पिता ने लड़के के मामा से इस सन्दर्भ में बात की। मामा ने धन मिलने के लालच में वर के पिता की बात स्वीकार कर ली। लड़के को दूल्हे के वस्त्र और आभूषण पहनाकर राजकुमारी से विवाह करवा दिया गया।


राजा ने बहुत सारा धन देकर अपनी बेटी को विदा किया। विवाह के बाद लड़का जब राजकुमारी के साथ लौट रहा था तो वह सच को छिपा नहीं सका और उसने राजकुमारी के ओढ़नी पर लिख दिया की राजकुमारी, तुम्हारा विवाह मेरे साथ हुआ था, मैं तो वाराणसी पढाई के लिए जा रहा हूँ और अब तुम्हें जिस नवयुवक की पत्नी बनना पड़ेगा, वह एक आँख से काना है।


जब राजकुमारी ने अपनी ओढ़नी पर लिखा हुआ पढ़ा तो उसने काने लड़के के साथ जाने से इनकार कर दिया। राजा को जब ये सब बातों की जानकारी लगीं, तो उसने राजकुमारी को महल में ही रख लिया।


उधर लड़का अपने मामा के साथ वाराणसी पहुँच गया और गुरुकुल में पढ़ना शुरू कर दिया। जब उसकी आयु सोलह वर्ष की हुई तो उसने यज्ञ किया। यज्ञ के समाप्ति पर ब्राह्मणों को भोजन कराया और खूब अन्न, वस्त्र, आभूषण दान किए। रात को वह अपने कक्ष में सो गया। शिवजी के वरदान के अनुसार शयनावस्था में ही उसके प्राण निकल गए। सूर्योदय पर मामा मृत भांजे को देखकर रोने-धोने लगा। आसपास के लोग भी एकत्र होकर दुख प्रकट करने लगे।


लड़के के मामा के रोना, विलाप करने के स्वर पास से गुजरते हुए भगवान शिवजी  और माता पार्वतीजी ने भी सुने।

माता पार्वतीजी ने भगवान से कहा, प्राणनाथ, मुझे इसके रोने का स्वर सहन नहीं हो रहा। आप इस व्यक्ति के कष्ट को दूर करें।


भगवान शिवजी ने माता पार्वतीजी के साथ अदृश्य रूप में समीप जाकर देखा तो भोलेनाथ, माता पार्वतीजी से बोले, यह तो उसी साहूकार का पुत्र है, जिसे मैंने सोलह वर्ष की आयु का वरदान दिया था। इसकी आयु पूरी हो गई है।


माँ पार्वतीजी ने फिर भगवान शिवजी से निवेदन कर उस बालक को जीवन देने का आग्रह किया। माता पार्वतीजी के आग्रह पर भगवान शिव ने उस लड़के को जीवित होने का वरदान दे दिया और कुछ ही पल में साहूकार का पुत्र जीवित होकर उठ बैठा।


शिक्षा समाप्त करके लड़का अपने मामा के साथ अपने नगर की ओर चल दिया। दोनों चलते हुए उसी नगर में पहुँचे, जहाँ उस लड़के का विवाह हुआ था। दोनों ने उस नगर में भी यज्ञ का आयोजन किया। समीप से गुजरते हुए नगर के राजा ने यज्ञ का आयोजन देखा और उसने तुरंत ही लड़के और उसके मामा को पहचान लिया।


यज्ञ के समाप्त होने पर राजा मामा और लड़के को अपने महल में ले गया और कुछ दिन उन्हें अपने महल में रखकर बहुत-सा धन, वस्त्र, आभूषण आदि देकर राजकुमारी के साथ विदा कर दिया।


इधर भूखे-प्यासे रहकर साहूकार और उसकी धर्म-पत्नी अपने बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने प्रतिज्ञा कर रखी थी कि यदि उन्हें अपने बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो दोनों उसी क्षण अपने प्राण त्याग देंगे। परन्तु जैसे ही उन्होंने अपने बेटे के जीवित वापस लौटने का समाचार सुना तो वह बहुत प्रसन्न हुए। दोनों पति-पत्नी अपने शुभचिंतको के साथ नगर के द्वार पर पहुंचे।


अपने बेटे के विवाह का समाचार सुनकर, पुत्रवधू राजकुमारी को देखकर उनकी खुशी का ठिकाना न रहा। उसी रात भगवान शिवजी ने व्यापारी के स्वप्न में आकर कहा, हे श्रेष्ठी, मैंने आपके सोमवार के व्रत करने और व्रतकथा सुनने से प्रसन्न होकर आपके पुत्र को लम्बी आयु प्रदान की है। पुत्र की लम्बी आयु जानकार व्यापारी बहुत प्रसन्न हुआ।


शिव भक्त होने तथा सोमवार का व्रत व् पूजा करने से व्यापारी की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण हुईं, इसी प्रकार जो भक्त सोमवार का विधिवत व्रत पूजन करते हैं और व्रतकथा पढ़ते या सुनते हैं उनकी सभी मनोकानए पूर्ण होती हैं।


सोमवार व्रत पूजन विधि

नारद-पुराण के अनुसार सोमवार व्रत में मनुष्य को प्रातः स्नानआदि करके भगवन शिव जी को जल और बेल पत्र चढ़ाना चाहिए तथा शिव-पार्वती की पूजा करनी चाहिए। पूजन के पश्चात् सोमवार व्रत कथा पढ़नी या सुननी चाहिए। इसके उपरांत केवल एक समय ही भोजन करना चाहिए। साधारण रूप से सोमवार व्रत दिन के तीसरे पहर तक ही होता है।  मतलब की संध्या तक ही होता है। सोमवार व्रत तीन प्रकार से होता है प्रति सोमवार व्रत, समय प्रदोष व्रत व् सोलह सोमवार व्रत। सभी व्रतों की पूजन विधि एक ही होती है।  


शिव भक्त  🙏

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